UP में डेंगू का कहर, कई सरकारी अस्पतालों में प्लेटलेट्स को सेपरेट करने वाली मशीन ही नहीं!

आशीष श्रीवास्तव

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उत्तर प्रदेश में डेंगू के कहर से हाहाकार मचा हुआ है. लगातार डेंगू मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है. ऐसे में प्लेटलेट्स की भी मांग बढ़ती जा रही है. प्लेटलेट्स को सेपरेट करने वाली मशीन कई सरकारी अस्पतालों में मौजूद नहीं है. ऐसी स्थिति में मजबूरी में मरीज प्राइवेट अस्पताल पहुंच रहे हैं.

ब्लड कंपोनेंट सेपरेशन यूनिट उत्तर प्रदेश के केवल मेडिकल कॉलेज में उपलब्ध है. स्वास्थ्य विभाग का दावा है कि जल्द सभी जगह मशीन लग जाएंगे, लेकिन इसकी वजह से लाखों रुपये प्राइवेट हॉस्पिटल में जा रहा है और इलाज भी नहीं मिल पा रहा है.

डेंगू मरीज को प्लेटलेट्स की जरूरत होती है, लेकिन सरकारी अस्पताल में इस जरूरत को पूरा नहीं कर पा रहे हैं. जिसकी साफ वजह है कि बीसीएस यानी कि ब्लड कंपोनेंट सेपरेशन यूनिट जिससे कि प्लेटलेट्स को ब्लड से अलग किया जाता है, वह मौजूद ही नहीं है.

प्लेटलेट्स निकालने के लिए दो तरीके की मशीन जरूरत होती है. एक एसडीपी और एक आरडीपी. दो एसडीपी मशीन से प्लेटलेट्स निकालने की बात कहते हैं, जो उत्तर प्रदेश में सिर्फ मेडिकल कॉलेज में ही है. किसी भी अन्य जिले के चिकित्सालय में मौजूद ही नहीं है. ऐसे में प्लेटलेट्स के लिए डेंगू मरीजों को प्राइवेट अस्पताल जाना पड़ता है और जिसका खर्चा हजार रुपये में आता है.

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हालांकि, अधिकारियों के मुताबिक टेंडर हो गया है और जल्दी ऐसा होगा. दूसरी तरफ ब्लड सेपरेशन यूनिट, जिनमें ब्लड से प्लेटलेट्स 5 से 10 हजार बन पाती है, वह गिने-चुने जिलों में मौजूद है. जिन जिलों में ब्लड सेपरेशन यूनिट नहीं है वहां मरीजों को प्राइवेट अस्पताल का रुख करना पड़ रहा है.

बीसीएस एसडीपी केवल उत्तर प्रदेश के मेडिकल कॉलेज में ही मौजूद है, जिसकी सबसे ज्यादा जरूरत है. यहां तक कि लखनऊ के सिविल हॉस्पिटल में भी ब्लड सेपरेशन यूनिट मौजूद नहीं है. बीसीएस आरडीपी सिर्फ कुछ जिलों में मौजूद है, जिसमें 47 जिलों में यूनिट शुरू ही नहीं हो पाई है और जहां पर यूनिट लगी है वहां पर या तो खराब है या उनके पास टेक्निकल स्टाफ नहीं है. उच्च अधिकारियों को पत्र लिखा जा रहा है, जबकि कोई सुनवाई नहीं हो रही है. सरकारी यूनिट खराब होने से निजी क्षेत्र में लगी 270 यूनिट को फायदा मिलता है और मन मुताबिक कीमत वसूलते हैं.

लखनऊ के मोहनलालगंज में रहने वाली बुजुर्ग प्रेम शुक्ला की बेटी प्रीति मिश्रा को पिछले 10 दिनों से बुखार है, लेकिन इलाज के नाम पर उनको प्राइवेट अस्पताल जाना पड़ रहा है. प्लेटलेट्स इतनी कम हो गई थी कि उनको चलने में मुश्किल होने लगा. ऐसे में सरकारी अस्पताल में उन्हें कोई जानकारी नहीं मिली. पैसा भी काफी खर्च हो गया है. यहां तक कि जो दवा भी लिखी गई है सरकारी अस्पताल में वह भी बाहर से लेने को कहा गया है.

रायबरेली जिले में ब्लड सेपरेशन यूनिट तो आ गई है, लेकिन उसे स्टोर करने वाले फ्रिज के इंतजार में अभी भी जिला अस्पताल बैठा हुआ है, जिससे लोगों को काफी समस्याएं हो रही हैं. फ्रीजर और अन्य संसाधन जब मौजूद नहीं है. गोरखपुर में एम्स बनाकर पूरी तरह तैयार है, लेकिन ब्लड बैंक और ब्लड बैंक के अंदर मशीनों का इंतजार कई वर्षों से है, जहां पर बाहर केवल गार्ड तैनात है.

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हमीरपुर जिले में ब्लड सेपरेशन यूनिट चालू न होने से प्लेटलेट्स की कमी पर इलाज कराने के लिए मरीजों को कानपुर जाकर इलाज कराना पड़ता है. वहां पर हजारों रुपये खर्च करने पड़ते हैं. हमीरपुर जिले में तकरीबन 1000 मरीज रोजाना आते हैं और डेंगू की तादाद भी ज्यादा है.

चंदौली जिले में ब्लड कंपोनेंट सेपरेशन यूनिट की स्थापना तो कर दी गई है, लेकिन यूनिट पर ताला लटका हुआ है. सीएमएस के मुताबिक अधिकतर मशीन आ चुके हैं, लेकिन रेफ्रिजरेटर या अन्य चीज अभी तक नहीं पहुंच पाई है और मैनपावर की भी कमी है. मजबूरी में बनारस लोगों को जाना पड़ता है.

यूपी के डीजी हेल्थ के मुताबिक, हमारे प्रदेश में ब्लड सेपरेशन यूनिट केवल मेडिकल कॉलेज में उपलब्ध है. सरकारी अस्पतालों में अभी नहीं हो पाई है, जिसके लिए टेंडर की प्रक्रिया हो गई है. जल्द ही यह लग जाएगी.

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