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पैर कटने के बाद भी कराटे प्लेयर ने नहीं मानी हार, नोएडा की लोरी बन गई आर्चरी में मेडलिस्ट

Noida News: नोएडा की 19 साल की लोरी ने 16 साल तक कराटे सीखा, लेकिन नेशनल से आगे बढ़ने से पहले उसका एक्सीडेंट हुआ और उसका एक पैर काटना पड़ा. 2022 से लोरी ने आर्चरी करनी शुरु की. शुरुआत के 12 दिन बाद ही वह नेशनल लेवल पर मेडल ले आई. आर्चरी में लोरी का […]
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Noida News: नोएडा की 19 साल की लोरी ने 16 साल तक कराटे सीखा, लेकिन नेशनल से आगे बढ़ने से पहले उसका एक्सीडेंट हुआ और उसका एक पैर काटना पड़ा. 2022 से लोरी ने आर्चरी करनी शुरु की. शुरुआत के 12 दिन बाद ही वह नेशनल लेवल पर मेडल ले आई. आर्चरी में लोरी का एक-एक निशाना एकदम सटीक बैठता है. टारगेट पर लगे लोरी के निशानों को देखकर आप कह नहीं सकते कि आर्चरी में उसने महज 1 साल पहले ही कदम रखा है.

’39 गोल्ड एक सिल्वर मेडल और..हादसे का वो दिन….’

दरअसल, 19 साल की लोरी 3 साल की उम्र से कराटे सीख रही थी. 16 साल तक कराटे सीखने के बाद कराटे में कई मेडल लाने के बाद लोरी को कराटे छोड़ना पड़ा और आर्चरी की तरफ रुख करना पड़ा. यह सब हुआ एक हादसे की वजह से. मई 2019 में लोरी का एक्सीडेंट हो गया. एक बस लोरी के पैर के ऊपर से गुजर गई. हादसे के बाद लोरी का एक पैर काटना पड़ा और यहीं उसके कराटे के जर्नी रुक गई. कराटे में लोरी ने 40 मेडल जीते थे. इनमें से एक सिल्वर मेडल, बाकी सब गोल्ड मेडल थे. कराटे में लोरी नेशनल लेवल पर खेल रही थी. लोरी के पिता ब्रह्माशंकर बताते हैं कि वह बचपन से ही अपनी बच्ची को कराटे चैंपियन बनाना चाहते, लेकिन जब डॉक्टर ने कहा कि लोरी का पैर काटना पड़ेगा तो वह बहुत रोए थे.

‘पिता ने दिखाई नई राह’

इलाज के बाद 1 साल तक जब लोरी घर पर रही तो उसके पिता ने ही उसे हिम्मत दिखाई और उसे आर्चरी का रास्ता भी दिखाया. हालांकि लोरी कहती है कि शुरुआती दिन बेहद मुश्किल भरे थे. कई लोग उसका मजाक बनाते थे और कहते थे कि तुमसे नहीं हो पाएगा.

’12 दिन में ही आया पहला नेश्नल मेडल’

लोरी ने बताया कि लोग भले ही उसे ताना मार रहे थे. कई बार उसका मजाक बना रहे थे लेकिन उसने कभी हिम्मत नहीं हारी. कई बार घर जाकर रोई तो कभी प्रैक्टिस के दौरान ही रो पड़ी, लेकिन मन में ये ठान लिया था कि अब आर्चरी में आई है, तो कुछ ना कुछ बड़ा करेंगे. लोरी बताती हैं जब उन्होंने आर्चरी सीखनी शुरू की उसके 12 दिन बाद एक कंपटीशन था लोरी से ये कहा गया कि चलो घूम कर आ जाना लेकिन बड़ी बात यह कि महज 12 दिन के भीतर लोरी नेशनल लेवल पर इस कंपटीशन में मेडल लेकर आ गई.

‘आर्थिक तंगी बनी रुकावट’

हालांकि लोरी और उसके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है लोरी के पिता एक चाउमिन का ठेला लगाते हैं. वो कहते हैं कि पहले ही लोरी के इलाज के लिए वो एक प्लॉट बेच चुके हैं. लेकिन अब आर्चरी एक महंगा गेम है. अभी लोरी 50 मीटर रेंज में खेलती है. 70 मीटर रेंज में खेलने के लिए उसे एक नए बो (धनुष) की जरूरत है. इसकी कीमत लगभग 4 लाख रुपये होगी और जिसका इंतजाम वो फिलहाल करने की हालत में नहीं है. इस वजह से लोरी की आगे की यात्रा भी थोड़ी रुक सी गई है.

आपको बता दें कि 1 साल में ही लोरी आर्चरी में 3 से ज्यादा मेडल ला चुकी हैं. लोरी को फिलहाल मदद की दरकार है लेकिन उनके पिता को विश्वास है कि एक दिन सारी दिक्कतों को दूर कर लोरी देश के लिए ओलंपिक में मेडल लेकर जरूर आएगी.

 

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