
देश की सबसे पुरानी पार्टी होने का दावा करने वाली कांग्रेस का आगामी 6 जुलाई के बाद उत्तर प्रदेश विधान परिषद में कोई प्रतिनिधि नहीं होगा. दरअसल, विधान परिषद में कांग्रेस पार्टी के एकमात्र सदस्य दीपक सिंह का 6 जुलाई को कार्यकाल समाप्त हो रहा है. विधान परिषद के सदस्य के रूप में दीपक सिंह का कार्यकाल खत्म होने के बाद कांग्रेस का प्रतिनिधित्व उच्च सदन में 'शून्य' हो जाएगा.
यूपी में कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व साल 1989 तक पूरी तरह कायम रहा. हालांकि, 1977 और 1989 में विधान परिषद के नेता का पद भारतीय जनता पार्टी के पास था. पिछले 33 सालों में कांग्रेस पार्टी ऐसे सिकुड़ती चली गई कि 6 जुलाई को उसका प्रतिनिधित्व 'शून्य' पर पहुंचने वाला है. ऐसा पहली बार होगा जब यूपी विधान परिषद में कांग्रेस का कोई प्रतिनिधित्व नहीं होगा.
विधानसभा में भी अस्तित्व बचाने की चुनौती
यूपी विधान परिषद में कांग्रेस का आगामी 6 जुलाई को प्रतिनिधित्व खत्म हो रहा है, मगर पार्टी के सामने विधानसभा में भी अपना अस्तित्व बचाने की चुनौती होगी. बता दें कि यूपी विधानसभा चुनाव में इस बार कांग्रेस पार्टी ने सिर्फ दो सीटें हासिल की हैं.
कांग्रेस पार्टी के महज दो विधायक, महाराजगंज के फरेंदा से वीरेंद्र चौधरी और रामपुर खास से आराधना मिश्रा इस बार विधानसभा पहुंच पाई हैं. मगर आरएलडी और निषाद पार्टी जैसे क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस से बेहतर प्रदर्शन किया है.
ऐसे में अपनी पार्टी के विधायकों को सहेज कर रखना कांग्रेस पार्टी के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी.अगर ऐसा न हुआ तो कांग्रेस पार्टी विधान परिषद की तरह यूपी विधानसभा में भी 'शून्य' पर पहुंच जाएगी.