बाबरी मस्जिद के पूर्व पक्षकार इकबाल अंसारी बोले, रामचरितमानस को बनाइए राष्ट्रीय ग्रंथ

बनबीर सिंह

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रामचरितमानस विवाद को लेकर बाबरी मस्जिद के पूर्व पक्षकार इकबाल अंसारी (Iqbal Ansari) ने एक बड़ा बयान दिया है. इकबाल अंसारी रामचरितमानस विवाद को लेकर काफी आहत हैं. उन्होंने रामचरितमानस को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित करने की मांग की है. साथ ही उन्होंने कहा कि यह कानून भी बनना चाहिए कि किसी भी धर्म के मुख्य ग्रंथ या पुस्तक पर टिप्पणी करने वाले को सजा मिले.

अयोध्या में इकबाल अंसारी ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में रामचरितमानस को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित नहीं किया गया तो आखिर कब किया जाएगा?

राम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी ने क्या कहा?

वहीं, श्री राम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने इकबाल अंसारी के इस बयान पर कहा कि इस तरह की मांग पहले भी हो चुकी है. यह पहली बार है कि इस्लाम धर्म से जुड़ा कोई इस तरह की मांग कर रहा है. उन्होंने आगे कहा कि हमारे धार्मिक ग्रंथों की आलोचना करने वालो के खिलाफ कानून बनाया जाए जिससे उन्हें कड़ी सजा मिले.किसी की हिम्मत हमारे धार्मिक ग्रंथों पर टिप्पणी करने की न हो.

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विश्व हिन्दू परिषद ने दी ये प्रतिक्रिया

वहीं, विश्व हिन्दू परिषद के अवध प्रांत के प्रवक्ता शरद शर्मा ने इकबाल अंसारी की मांग का स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि यह सबको साथ लेकर चलने वाला ग्रंथ है, इसलिए इसे राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित करना चाहिए.

रामचरितमानस विवाद ऐसे शुरू हुआ था

सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस को लेकर विवादित बयान दिया था. इसको लेकर भारतीय जनता पार्टी भड़क गई थी. इसके बाद सपा मुख्यालय के बाहर रामचरितमानस की चौपाइयों पर सवाल उठाते हुए पोस्टर भी लगाए गए थे. सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भी रामचरितमानस की कुछ चौपाइयों का अर्थ सीएम योगी से पूछा था. इस विवाद को लेकर यूपी की सियासत काफी गरमा गई थी.

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बता दें कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने 22 जनवरी को कहा था कि श्रीरामचरितमानस की कुछ पंक्तियों में जाति, वर्ण और वर्ग के आधार पर यदि समाज के किसी वर्ग का अपमान हुआ है तो वह निश्चित रूप से वह धर्म नहीं है, यह ‘अधर्म’ है.

स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा था, ‘‘श्रीरामचरित मानस की कुछ पंक्तियों में तेली और ‘कुम्हार’ जैसी जातियों के नामों का उल्लेख है, जो इन जातियों के लाखों लोगों की भावनाओं को आहत करती हैं.’’

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स्वामी प्रसाद मौर्य ने मांग की थी कि पुस्तक के ऐसे हिस्से पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए जो किसी की जाति या ऐसे किसी चिह्न के आधार पर किसी का अपमान करते हैं.

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